वेद – विज्ञान – वीथिका (Veda Vijnana Vithika)
इस सम्बन्ध में पूर्व अथवा पश्चिम के विद्वानों में कोई मतभेद नहीं है कि ऋग्वेद संसार का सबसे प्राचीन ग्रन्थ है, यद्यपि इस सम्बन्ध में पर्याप्त मतभेद है कि ऋग्वेद कितना पुराना है। also वेदों के काल तथा अन्य बहिरङ्ग विषयों के सम्बन्ध में वैदिक साहित्य के विभिन्न इतिहासों में पर्याप्त ऊहापोह हो चुका हैं। एतत्सम्बन्धी विवेचन जिज्ञासु वहाँ देख सकते हैं। प्रस्तुत अन्थ में हम वेदों के अन्तरङ्ग विवेचन पर ही अधिक बल देंगे। Ved Vigyan Vithika (Veda Vijnana Vithika)
ब्राह्मणग्रन्थ और वेदमन्त्रार्थ (Ved Vigyan Vithika)
जिस प्रकार वेदों के काल के सम्बन्ध में मतभेद है उसी प्रकार वेदों की व्याख्या के सम्बन्ध में भी मतभेद है। व्याख्या सम्बन्धी इस मतभेद की चर्चा भी वैदिक साहित्य के विभिन्न इतिहासों में विस्तार से हो चुकी है। accordingly प्रस्तुत मन्थ में हम वैदिक साहित्य की वह व्याख्या लेकर चलेंगे जो ब्राह्मणग्रन्थों में दी गई है। ब्राह्मण का अर्थ है ब्रह्म अर्थात् वेद की व्याख्या। ब्राह्मण साहित्य विपुलकाय है और उसमें वेदमन्त्रों की क्रमशः टीका तो नहीं है परन्तु उन वेदमन्त्रों का विनियोग किस कर्म में होता है- इसकी चर्चा अवश्य है।
सहज ही इस चर्चा के अन्तर्गत वेदमन्त्र के अर्थ पर भी विचार करना पड़ता है। यह सत्य है कि इन ब्राह्मणप्रन्थों में मुख्यतः वैदिक यज्ञों का प्रतिपादन है but उस प्रतिपादन की पृष्ठभूमि में अनिवार्यतः सृष्टिविद्या का वर्णन है। इस सृष्टिविद्या के अन्तर्गत विश्व के उद्भव की चर्चा ही नहीं है अपितु विश्व के स्वरूप का विश्लेषण भी है। यह विश्लेषण पर्याप्त विस्तृत और सूक्ष्म है। इसी विश्लेषण के आधार पर वेदमन्त्रों में स्तुत देवों का भी स्वरूप ठीक से समझा जा सकता है।
surely विश्व की प्राचीनतम मानव सभ्यता के युग से आधुनिक सभ्यता, संस्कृति एवं वैज्ञानिक आविष्कारों का मुख्यत: आधार भू-मंडल में स्थित प्रमुख चार अवयव-जल, अग्नि, वायु और मृदा हैं। इन चारों वस्तुओं के विषद ज्ञान को वेद कहते हैं। वेद चार हैं-ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद। इनकी चार अलग-अलग संहिताएं हैं। (Veda Vijnana Vithika)
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