समसामयिक हिन्दी लघुकथाएँ : चार दशकों के लघुकथा लेखन ने इस विद्या को समृद्ध ही नहीं, प्रतिष्टित भी किया है। सैकड़ों लेखकों ने इसे अपनी अभिव्यक्ति का माध्यम बनाया है, उनमें से सामर्थ्यवान लेखकों को रेखांकित करने का महती कार्य त्रिलोक सिंह ठकुरेला के संपादन में ‘समसामायिक हिन्दी लघुकथाएँ’ पुस्तक में बखूबी किया है। त्रिलोक सिंह ठकुरेला को इस महत्वपूर्ण कार्य सम्पन्न करने के लिए साधुवाद।
इन लघुकथाओं में कहीं स्त्री विषयक प्रश्न हैं तो कहीं दलित विषयक, कहीं भावों को व्यक्त करने को प्राथमिकता दी गई है, तो कहीं परिवार और रिश्ते कथा में बुने गए हैं। विषयों की विविधता इस संकलन को अधिक उपयोगी बनाती है।
प्रो. रुप देवगुण सामाजिक हैसियत का ‘अंतर’ स्पष्ट करते हुए हाशिए पर पड़े आदमी के प्रति संवेदना व्यक्त करते है। मुरलीधर वैष्णव ‘एग्रीमेंट’ में ममता और निर्ममता के बीच ऐसे कारुणिक परिदृश्य को रचते हैं की पाठक अवाक् रह जाता है। त्रिलोक सिंह ठकुरेला की ‘रीतिरिवाज’ के पात्र जाति की व्यर्थता को देखते हुए भी अपनी जातिगत श्रेष्ठता प्रदर्शित करते है। रामकुमार घोटड के ‘अगम योद्धा’ गायत्री मंत्र न बोलने वाले हिन्दुओं के पेट में त्रिशूल और कुरान की आयत ना बोलने वाले मुसलमानों के पेट में चाकू घोंप देते है। गोविन्द शर्मा बताते है की धन की ‘विरासत’ संभालने के लिए सभी तत्पर हैं लेकिन साहित्य की विरासत संभालने के लिए कोई तैयार नहीं। प्रभात दुबे वार्तालाप के माध्यम से ‘अनकहा सच’ प्रकट कर देते है। रमेश मनोहरा की ‘ठेस’ में माँ की उपस्थिति, पति-पत्नी की स्वतंत्रता में बाधा बन जाती है। किशनलाल शर्मा की ‘फिरार’ में पत्नी फिगर मेंटेन करने ब बच्चे पैदा करने के लिए सरोगेट मदर की कोख किराए पर लेती है। ज्योति जैन उजागर करती हैं की ‘चैटिंग’ करते दोस्ती बढ़ गई तो दोस्त जिस महिला मित्र से मिलने जा रहा था, वह उसकी बहन निकली। नदीम अहमद नदीम की लेखनी ‘असली प्रयोजन’ तक पहुंच रखती है और पंकज शर्मा ‘खानदान’ में बेटे की बजाय बेटी के जन्म को अधिक महत्व देते है।
Samsamayik Hindi Laghu Kathayen
समसामयिक हिन्दी लघुकथाएँ
Author : Trilok Singh Thakurela
Language : Hindi
ISBN : 9789385593895
Edition : 2016
Publisher : RG GROUP
₹200.00
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