रसरंगिनी (मुकरी संग्रह) : रसपूर्ण एवं मनोरंजक काव्य विधाओं में मुकरी का विशिष्ट स्थान है। यद्यपि ‘मुकरी’ हिंदी साहित्य का विरल काव्य रूप है किंतु हर्ष का विषय है कि इन दिनों मुकरी का दौर लौट आया है।
अधिकांश विद्वान मानते हैं कि मुकरी पहेलियों का ही एक प्रचलित रूप है। इसे इसका यह नाम ‘मुकरना’ क्रिया से मिला है। दो सखियों के द्विपक्षीय संवाद के कारण इसे मुकरी कहा गया है क्योंकि इसमें वक्ता सखि अपनी बात से मुकर जाती है। मुकरी का अर्थ होता है- कहकर नकार देना, मुकर जाना अथवा अपनी बात से पीछे हट जाना।
पहेलियों का मूल उद्देश्य बुद्धि विकास के साथ-साथ मनोरंजन करना है। मुकरी सृजन के पीछे भी यही भावना निहित है। मुकरी में निहित अर्थ एक रेखिक न होकर द्विरेखिक होता है। विद्वानों ने अमीर खुसरो को मुकरी विधा का प्रथम रचनाकार माना है। इस विधा में बहुत कम सृजन होने के बावजूद यह लोक-कंठ में विराजती रही है। अमीर खुसरो के बाद भारतेंदु हरिश्चंद्र, नागार्जुन, विजेता मुद्गलपुरी, दिनेश बाबा, हीरा प्रसाद ‘हरेंद्र’, त्रिलोक सिंह ठकुरेला, डाॅक्टर प्रदीप शुक्ल, कैलाश झा किंकर, सुधीर कुमार प्रोग्रामर जैसे अनेक रचनाकारों ने इस विधा को अपने सृजन का माध्यम बनाया।
Rasrangini (Mukari Sangrah)
रसरंगिनी (मुकरी संग्रह)
Author : Tarkeshwari ‘Sudhi’
Language : Hindi
ISBN : 9789387297951
Edition : 2020
Publisher : RG Group
₹59.00
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