आज फिर : अनन्त व असीमित काल में इस लघुखण्ड में लघुतम मानव जीवन में घटित सभी घटनाओं को स्वयं की दृष्टि से देख समझकर शब्दों में हूबहू उतार देना मानव के बस में शायद पूरी तरह से संभव नहीं। हाँ, चेष्टा करने से बिम्ब के प्रतिबिम्ब को उकेरा जा सकता है, परन्तु बिम्ब की सजीवता भला प्रतिबिम्ब में कहां समा पाती है? पिछले 21 वर्षों से बिम्बों में मन को रमाते रमाते शब्दों में हूबहू उकेरने की कला भले ही अपुष्ट रही हो परन्तु चेष्टा करने के अधिकार का उपयोग करने की साहित्य में वर्जना विरल ही है।
मन भी कैसा है, जिस पर जी आए उसको शब्दों का रुप दे दे और ना आए उस पर शब्दों से ही कटाक्ष कर दे। भला मन को कौन समझा सका है, कौन रोक सका है, शब्द ही हैं, जो मानव को मानव की पूर्णता प्रदान करते हैं। इन्हीं शब्दों को मेरे मौन प्रणाम के साथ प्रस्तुत है। मेरी कुछ अनुभूतियाँ।
Aaj Fir
आज फिर
Author : Pukhraj Prajapat
Language : Hindi
ISBN : 9789390179190
Edition : 2021
Publisher : RG Group
₹74.00
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