बारहठ ईसरदास : हरिरस एवं गुण-निन्दा-स्तुति : ‘ईसरा परमेसरा’ की लोक-उपाधि से विख्यात बारहठ ईसरदास मध्यकालीन भक्त कवियों में अग्रगण्य हैं। यह भी प्रसिद्ध है कि इनकी अप्रतिम भक्ति के प्रभाव से भगवान् रणछोड़राय इनके अरस-परस (वशीभूत) हो गए थे जिसके फलस्वरूप आर्तजनों के दुःख-निवारणार्थ इनके द्वारा अनेक अलौकिक कार्यों का सम्पादन हुआ जिससे इनका विरुद ईसरा परमेसरा’ (ईसरदास परमेश्वर-स्वरूप है) सर्वत्र प्रसिद्ध हुआ। ऐसा गौरवपूर्ण विरुद अद्यावधि किसी भी भक्त कवि को प्राप्त नहीं हो सका है।
ईसरदास द्वारा प्रणीत तयालीस काव्य-कृतियों में वैष्णव भक्ति की कृष्ण-भक्ति-धारा से सम्बन्धित ‘हरिरस’ एवं ‘गुण-निन्दा-स्तुति’,शक्ति-आराधना से सम्बन्धित देवियांण’ तथा वीर रस-विषयक ‘हालाँ-झालाँरा कुंडलिया’ प्रमुख हैं। भक्ति साहित्य में ‘हरिरस’ सर्वाधिक चर्चित एवं अतुल्य कृति है जिसका राजस्थान, गुजरात एवं मालवा (मध्य प्रदेश) में असंख्य भक्तों द्वारा नित्य पाठ किया जाता है। ‘गुण-निन्दा-स्तुति’ नैतिकता तथा सामाजिकता के उच्चादर्शों की रक्षा के संदेश से मण्डित काव्य-कृति है जिसमें उपालम्भ, व्यंग्य एवं निन्दा के माध्यम से भगवद्भक्ति-निरूपण की सर्वथा नवीन पद्धति आविर्भूत हुई है। भाव-गाम्भीर्य, रचना-लाघव, वचन-वक्रता, भक्ति-विवेचन एवं तत्त्वबोध की दृष्टि से उनका काव्य अनूठा है जिसकी समता अन्यत्र दुर्लभ है।
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