हथाई : हथाई मूलतः मारवाड़ी भाषा के छोटे-छोटे व्यंग्य हैं, जो पाठक को अपने प्रवाह में बहा ले जाते हैं। आज का दौर बहुत ‘एंग्रीमैन’ दौर है। आदमी की आंखें चढ़ी ही रहती हैं। हंसी-ठट्टा करना असहज हो गया है। मुस्कान का अवसान हो गया है। भृकुटि की लगाम खींची हुई ही रहती है। हंसना मानों मना हैं, आखिर यह चिन्ता का विषय है कि अब ‘उल्टासिवलाइज’ हो गए है या समाज के लिए नालायक। ‘मुस्कराते होंठ’ क्यों गायब हो रहे हैं? आज लॉफिंग क्लब की जरूरत आ पड़ी है। शायद हमारा परिवेश बहुत बदल गया है।
मारवाड़ में हथाई की एक पुरानी परम्परा रही हैं। आओ नी पधारों, जाजम ढ़लाऊ, रह्यौ नी रातड़ली, सिखड़ली जैसे मदभिन्ने गीत हेतालुओं की झाला दे रहे हैं। हथाई में मारवाड़ का लोकजीवन और लोकानुरंजन जीवन्त हो उठता है। नेह में गाढ़ा निखार आ जाता है। लोक-कैथाणों से बड़ा संदेश सहजता से मिल जाता है।
छंवरौ री छीयां में हथाई रौ हेलों, रेवाण री रिवाईयत भाई-सैंणो री अपणाईत इण मरू भौम री अमरहथाई है। इस रचना में ऐसे ही छह बीसी छोटी-मोटी व्यंग्य रचनाएं है, जो आपको खूब हंसाऐगी।
Hathai
हथाई
Author : Dr. Ummed Singh Inda
Language : Hindi
Edition : 2021
ISBN : 9789390179176
Publisher : Rajasthani Granthagar
₹74.00
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