महाराणा प्रताप के प्रमुख सहयोगी राजा रामशाह तंवर ग्वालियर : राजा रामशाह तंवर और उनके वंशजों का भारतीय इतिहास एवं संस्कृति में बहुमूल्य योगदान रहा है। राजा रामशाह जन्म से मृत्यु तक संघर्ष करते रहे, जब उनका जन्म हुआ तब उनके पैतृक राज्य और ग्वालियर दुर्ग पर दिल्ली सुल्तान घेरा डाले बैठा था, उनके जन्म की खुशियों पर छोड़ी गई तोपें दुश्मनों के लिए चुनौती थी। लगभग सात वर्षों के लम्बे घेरे के पश्चात् दिल्ली के लोदियों ने ग्वालियर पर अधिकार किया। राजा रामशाह उस समय मात्र 7-8 वर्ष की अवस्था में थे। इनके पिता राजा विक्रमादित्य ने 1526 ई. में पानीपत के युद्ध में भारत माता की रक्षार्थ बाबर से युद्ध करते हुए अपने प्राण दिये। उनके यशस्वी और योग्य युवराज मात्र 10 वर्ष की अवस्था में थे।
राजा रामशाह के जीवन का सबसे अमूल्य समय चित्तौड़ के 1567 के युद्ध के समय प्रारम्भ हुआ, जिसकी पूर्णाहुति हल्दीघाटी के 1576 के हुए युद्ध में हुई। मेवाड़ के महाराणा के हरावल में रहने वाले राजा रामशाह ने हल्दीघाटी में जिस वीरता का परिचय दिया, वह अपने आप में मिसाल है। डॉ. महेन्द्रसिंह तंवर ने उनके जीवन के विभिन्न आयामों पर गहन अध्ययन करके इस पुस्तक का लेखन किया है। साथ ही पुस्तक में कुछ परिशिष्ट भी जोड़ें गये, श्री सज्जनसिंह राणावत साहब, प्रो. वी.एस. भटनागर, स्वर्गीय हरिहर निवास द्विवेदी, श्री केसरीसिंह रूपावास, प्रो. सुशीला लड्ढा और श्री शक्तिसिंह के द्वारा समय-समय पर लिखे गये राजा रामशाह के जीवन पर विचार बहुत ही सारगर्भित और ऐतिहासिक है। निःसंदेह यह पुस्तक तंवरों पर आने वाले समय में होने वाले नवीन शोध कार्य एवं शोध करने वालों के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण ग्रंथ सिद्ध होगी।
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