मीणा इतिहास (मीणा, मेर, मेव)
मीणा लोग सिंधु सभ्यता के प्रोटो द्रविड़ लोग माने जाते है, जिनका गण चिह्न मीन (मछली) था। ये लोग आर्यों से पहले ही भारत में बसे हुए थे और उनकी संस्कृति-सभ्यता काफी बढ़ी-चढ़ी थी। धीरे-धीरे आर्यों तथा बाद की अन्य जातियों से खदेड़े जाने पर ये सिंधु घाटी से हटकर ‘आडावळा’ पर्वत-श्रृंखलाओं में जा बसे, जहां इनके थोक आज भी है। Meena Itihas
संस्कृत में ‘मीन’ शब्द की व्युत्पत्ति संदिग्ध होने कारण इन्हें मीन के पर्याय ‘मत्सय’ से संबोधित किया जाने लगा जबकि ये स्वंय अपने आपको ‘मीना’ ही कहते रहे। मत्स्यों का जो प्रदेश वेदों, ब्राह्मणों तथा अन्य भारतीय ग्रंथों में बताया गया है, वहीं आज भी मीणा जाति का प्रमुख स्थान होने के कारण आधुनिक मीणे ही प्राचीन मत्स्य रहे होंगे। सीथियन, शक, क्षत्रय, हूण आदि के वंशज न होकर ये लोग आदिवासी ही है, जो भले ही कभी बाहर से आकर बसे है, ठीक उसी तरह जिस तरह आर्य बाहर से आकर बसे हुए बताये जाते हैं। स्वभाव से भी युद्धप्रिय होने और दुर्गम स्थलों में निवास करने के कारण यह जाति भूमि का स्वामित्व भोगनेवाले शासक वर्ग में ही रही है।
राजस्थान में ‘मीना’ जाति ‘मीणा’ के नाम से जानी जाती है। विभिन्न निष्कर्षों के आधार पर लेखक ने मीणा इतिहास की कड़ियों को जोड़ने का प्रयास किया है, उससे मीणा जाति के ऐतिहासिक इतिवृत को समझने में निश्चित ही सहायता मिलेगी। Meena Itihas
Mina Itihas








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