राजस्थानी कहावतें : ‘कहावते’ अथवा ‘लोकोक्तिया’ शब्दशक्ति का सूत्रमय श्रृंगार है, जिनमें अनुभूतियों का मर्म भिदा रहता है। उनका प्रचार और प्रसार भाषा के उद्भव एवं विकास के साथ-साथ समानांतर गति से होता चला आ रहा है। विश्व की कदाचित् ही कोई ऐसी भाषा हो, जिसमें कहावतों का प्रचलन न मिलता हो। राजस्थानी भाषा भी उसका अपवाद नहीं है।
प्रस्तुत पुस्तक में राजस्थानी भाषा की कहावतों का संकलन अकारादि क्रम से किया गया है, जो केवल संकलन मात्र न होकर उनकी अर्थव्याप्ति तथा प्रासंगिकता भी व्यक्त करता है। उनके विद्वान् सम्पादक ने अपने अनेक वर्षों के परिश्रम तथा अध्यावसाय के बल पर उनका संग्रह किया है, जिनके अध्ययन से पता चलता है कि उन कहावतों में राजस्थान की संस्कृति एवं ज्ञान सम्पदा का अभिव्यंजन कितनी अधिक जीवंतता के साथ सुसम्भव हो सका है। प्रत्येक कहावत की अपनी निजी अस्मिता और क्षमता होती है, जिसका अर्थज्ञान करने के पश्चात् उसे व्यावहारिक रूप में प्रयुक्त किया जाय तो भाषा में चमत्कार, अभिव्यक्ति में सजीवता और अभिप्राय में ताजगी आ जाती है। इस पुस्तक की राजस्थानी कहावतें इन तीनों गुणों से समन्वित हैं, जिनका पठन-पाठन, अध्ययन-अध्यापन और श्रवण-कथन सभी श्रेणियों के जनसमुदाय के लिए अत्यंत ही उपादेय, ज्ञानवर्द्धक और विचारोत्तेजक सिद्ध हो सकता है।
राजस्थानी दोहावली (मूल पाठ तथा हिन्दी अर्थ सहित) : राजस्थानी दोहावली राजस्थान प्रदेश के उस संस्कृति का प्रतिबिम्ब है, जो वीरता, श्रृंगार, भक्ति नीति और व्यवहारिक ज्ञान की गरिमा से सम्पन्न गौरवशाली परम्पराओं और विलक्षण आदर्शों से परिपूर्ण है। यह उस प्रदेश की संस्कृति है, जहाँ की चप्पा-चप्पा भूमि वीरत्व की गाथाओं से गूंजती है। जहाँ की सतियों और सूरमाओं से आन, मान और मर्यादा की रक्षा के लिए असंख्य बलिदान दिए। जहाँ के भक्तों ने अपने भक्ति-बल से प्रभु को प्रत्यक्ष रूप से प्रकट किया। जहाँ के ज्ञानी संतों ने जीवन और जगत के, आत्मा और परमात्मा के रहस्यों को खोजा। जहाँ के प्रेमी-हृदय प्रेम के पर्याय बन गए। जहाँ की नीति कुशलता सुविख्यात है और सौन्दर्य बेजोड़ है। प्रकृति से निरन्तर जूँझते हुए भी सदा संतुलित, संयमित और प्रसन्न रहने वाले इस प्रदेश की सांस्कृतिक धरोहर और उसके वर्तमान स्वरूप का, अपनी पूर्ण विविधता के रूप में, इस संग्रह में चित्रण हुआ।
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