Hindu Sabhyata mein Nariyon ki Isthiti

हिन्दू सभ्यता में नारियों की स्थिति
Author : Ganeshilal Suthar
Language : Hindi
ISBN : 9789387297777
Edition : 2020
Publisher : RG GROUP

600.00

हिन्दू सभ्यता में नारियों की स्थिति : विश्वविश्रुत भारतीय इतिहासकार प्रो. (डाॅ.) ए. ऐस. अल्तेकर महोदय द्वारा रचित “The Position of Women in Hindu Civilisation” नामक उत्कृष्ट और अद्वितीय ग्रन्थ का ”हिन्दू सभ्यता में नारियों की स्थिति“ शीर्षक से युक्त यह हिन्दी अनुवाद इतिहासविदों, भारतीय इतिहास के विद्यार्थियों, अँगरेज़ी भाषा से अनभिज्ञ हिन्दीभाषी और हिन्दीभाषाविद् सामान्य तथा प्रबुद्ध पाठकों के अध्ययनार्थ प्रकाशित है। उपर्युक्त मूल ग्रन्थ का सुदीर्घ कालावधि के पश्चात् हिन्दी में यह अनुवाद पहली बार प्रस्तुत है। यद्यपि किसी एक ऐतिहासिक कालावधि, किसी एक पक्ष तथा किसी एक बृहद् ग्रन्थ को आधार बना कर हिन्दू नारीजाति की स्थिति के निरूपण से सम्बन्धित ग्रन्थ विद्यमान हैं, तथापि प्रागैतिहासिक कालावधि से लेकर वर्तमान काल (1956) तक हिन्दू नारीजाति के जीवन से सम्बन्धित सम्पूर्ण अवस्थाओं और पक्षों का तुलनात्मक, समीक्षात्मक और विशद विवेचन करने के कारण प्रोफेसर (डाॅ.) अल्तेकर का ग्रन्थ सर्वातिशायी, अतिविशिष्ट और अद्वितीय है।
इस ग्रन्थ के प्रथम से एकादश तक अध्यायों में हिन्दू नारियों की बाल्यावस्था और शिक्षा, विवाह और विवाह-विच्छेद, विवाहित जीवन, विधवा की स्थिति (दो भागों में), नारियाँ और लोक-जीवन, नारियाँ और धर्म, पत्याश्रय की अवधि में मालिकाना अधिकार, मालिकाना अधिकार-उत्तराधिकार और संविभाग, वेश तथा आभूषण, नारियों के प्रति सामान्य अभिवृत्ति का प्रागैतिहासिक कालावधि से वर्तमान काल तक क्रमशः विस्तृत विवेचन किया गया है। विधवा की स्थिति – प्रथम भाग में सतीप्रथा का विस्तृत वर्णन किया गया है। अन्तिम द्वादश अध्याय में चार युगों में हिन्दू सभ्यता में नारियों की स्थिति का समग्र रूप से सर्वेक्षण करते हुए महत्त्वपूर्ण सुझावपूर्वक भावी प्रत्याशा का निरूपण किया गया है।
वैदिक वाङ्मय, रामायण, महाभारत, पुराणशास्त्र, प्रमुख धर्म- शास्त्रीय ग्रन्थों, स्मृतिग्रन्थों, कौटिलीय अर्थशास्त्र, कामसूत्र, श्रेण्य संस्कृत साहित्य, बौद्ध तथा जैन धर्मों के प्रमुख ग्रन्थों से यथाप्रसंग मूल उद्धरण तथा सन्दर्भ प्रस्तुत करने के कारण प्रोफेसर (डाॅ.) अल्तेकर महोदय का ग्रन्थ सर्वथा शास्त्रान्वित, मौलिक तथा प्रामाणिक है। उन्होंने तत्तत् ग्रन्थकारों तथा विचारकों के मतों का तुलनात्मक दृष्टि से समीक्षात्मक विवेचन करते हुए उनके औचित्य तथा अनौचित्य का भी संकेत किया है। अपिच, प्रोफेसर (डाॅ.) अल्तेकर महोदय ने विदेशी यात्रियों के विवरणों, पुरातात्त्विक ग्रन्थों आदि तथा समस्त अपेक्षित ग्रन्थसामग्री से भी यथाप्रसंग सन्दर्भ प्रस्तुत कर उनका विवेचन किया है। यह अनुवादमय ग्रन्थ अँगरेज़ी भाषा न जानने वाली हिन्दीभाषी महिलाओं के लिए विशेष रूप से पठनीय है। इसकी भाषा परिष्कृत, प्रवाहमयी तथा सुबोध है। अनुवादक ने हिन्दी अनुवाद में मूल ग्रन्थ के प्रतिपाद्य को इतना सुस्पष्ट कर दिया है कि अनुवाद मूल जैसा प्रतीत होता है।

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