राजस्थान में स्वामी विवेकानन्द : स्वामी विवेकानन्द का राजस्थान से विशेष सम्बन्ध रहा है। उनके प्रारंभिक सन्यास का कुछ अंश राजस्थान में बीता। उन्होंने अपने छोटे-से जीवन में राजस्थान की तीन यात्राएं की। यह राजस्थान का सौभाग्य था, उनके लोकोपकारी कार्य जैसे- शिक्षा एवं सेवा को रामकृष्ण मिशन जैसी जनकल्याणकारी संस्था के माध्यम से फैलाने का सर्वप्रथम प्रयास राजस्थान से ही शुरू हुआ।
इस पुस्तक के प्रकाशन का तात्कालिक कारण स्वामी विवेकानन्द की राजस्थान से सम्बन्धित एक विशेष घटना रही है। स्वामी विवेकानन्द सन्यासी होने के नाते खेतड़ी नरेश श्री अजितसिंह जी के दरबार में नर्तकी की उपस्थिति में बैठने को तैयार नहीं थे, पर नर्तकी और खेतड़ी नरेश के आग्रह पर कि “कम-से-कम एक भजन तो सुन लें”, के इस आग्रह को टाल न सके और सभा में बैठ गये। नर्तकी ने सूरदास का भजन- “प्रभु मेरे अवगुन चित्त न धरो, समदरसी प्रभु नाम तिहारो…” सुनाया। स्वामी को यह आभास हुआ कि नर्तकी ने उनके अहंकार को चूर-चूर कर दिया और भेदभाव का विकार हटाने का इस भजन के माध्यम से प्रभावी उपदेश दिया। अपने अहंकार पर उनको ग्लानि हुई और वे रो पड़े। ज्ञानदात्री नर्तकी के प्रति आभार व्यक्त करने के लिए उन्होंने उसके पैर छू लिये और उसे “माँ” सम्बोधित किया। नर्तकी भी यह भूल गई कि समाज उसको हेय दृष्टि से देखता है और वह विवेकानन्द जी की वास्तविक माँ बन गई।
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Rajasthan Mein Swami Vivekanand
राजस्थान में स्वामी विवेकानन्द
Author : Jhabarmal Sharma
Language : Hindi
ISBN : 9788188757411
Edition : 2017
Publisher : RG GROUP
₹300.00
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