कर्नल जैम्स टाॅड कृत राजस्थान का पुरातत्व एवं इतिहास
Annals And Antiquities Of Rajasthan
जैम्स टॉड कृत महान पुस्तक “राजस्थान का पुरातत्व एवं इतिहास” के नवीन संस्करण को प्रकाशित करने की बात को कोई भी व्यक्ति हल्केपन से नहीं ले सकता। महायुद्व में राजपूतों के महान योगदान को देखकर इम्पीरियल कॉन्फरेंस में इनके प्रतिनिधि को आमंत्रित किया है और certainly यह निश्चित है कि वर्तमान महाविपत्ति के समाप्त होते ही भारतीय प्रशासन में राजपूतों को और अधिक बड़ा भाग सौपा जायेगा। इस तथ्य को दृष्टिगत रखते हुए यह अभिलाषा उत्पन्न हुई कि राजपूतों के पुरातत्त्व, इतिहास एवं उनकी सामाजिक संस्कृति को प्रकाशित कर उसे जनता के सामने प्रस्तुत किया जावे। Tod Rajasthan Puratatva Itihas
राजस्थान का पुरातत्व एवं इतिहास (Tod Rajasthan Puratatva Itihas)
surely यह पुस्तक अपने आप में उत्कृष्ट कालजयी साहित्य है और इसके साथ हमारा व्यवहार भी ऐसा ही होना चाहिए। स्वयं राजपूतों के लिये एवं उन भारतीयों के लिए जो अपने देश का इतिहास जानने में रुचि रखते हैं इस कृति का मूल्य दीर्घकाल तक बना रहेगा। इसमें जातीय अधिकारी एवं विशेषाधिकारों का पूर्ण विवरण है साथ ही उनकी प्राचीन परम्परायें, झगड़े, उनकी बस्तियाँ, वंशावली एवं पारिवारिक इतिहासों का सम्पूर्ण लेखा जोखा है। कर्नल टॉड ने बड़ी सावधानी से उन सारी सामग्रियों को संकलित किया है जिन्हें स्वयं राजपूत भूल गये थे। in fact कई राजपूत अब इस पुस्तक को पढ़कर अपनी जाति के इतिहास को चित्रवत् अनुभूति का विषय बना सकते हैं। उनका यह प्राचीन रूप अब तेजी से लुप्त हुआ जा रहा है।
पुस्तक में उनकी रुचि कम नहीं होगी कारण राजपूती चरित्र के प्रति टॉड सदैव ही एक गहन प्रशंसा का भाव रखते हैं, Although उनके दोषों को भी वे अनदेखी नहीं करते हैं। in short जो भी हो राजपूतों के लिये यह सन्तोष के आनन्द का विषय होगा कि एक ब्रिटिश अधिकारी ने भारतीय जातियों में से केवल उन्हीं की जाति को एक विशद इतिहास लिखने के लिये चुना और कठोर परिश्रम से उसे पूरा किया।
Annals and Antiquities of Rajasthan, Or, the Central and Western Rajpoot States of India by Lieutenant-Colonel James Tod Rajasthan Puratatva Itihas
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टॉड के इतिहास का नया संस्करण
कर्नल जेम्स टॉड के एनाल्स एंड एंटीक्विटीज ऑफ राजस्थान के विलियम क्रुक संपादित संस्करण का नया हिंदी अनुवाद आया है। पहले श्री बलदेवप्रसाद मिश्र और फिर एक भाग का गौरीशंकर हीराचंद ओझा ने अनुवाद किया था। कुछ समय बाद, कानपुर के इतिहास प्रेमी केशव कुमार ठाकुर ने भी एक अनुवाद किया।
1829 व 1832 ई. में प्रकाशित मूल ग्रंथ के इस संस्करण का प्रस्तुत अनुवाद प्रो. ध्रुव भट्टाचार्य ने किया है जबकि प्रस्तावना प्रो. जहूर खां मेहर का है। राजस्थान ग्रंथागार, सोजती गेट, जोधपुर का आभार कि मुझे इसकी प्रति उपलब्ध करवाई।
यह बड़ा सच है कि कर्नल टॉड का योगदान इतिहास के लिए सर्वेक्षण और लेखन में महत्वपूर्ण रहा है। मैं इसको इसलिए जानता हूं कि टॉड ने मेवाड़, गुजरात, मारवाड़, गोडवाड, हाड़ौती, कोटा आदि के जिन स्थानों की यात्राएं की, उन सब जगहों को मैंने भी घूम घूमकर देखा, उन शिलालेखों की सूचनाओं को जांचा और परखा जिनके बारे में हमें टॉड ने बताया। उसकी अन्य सूचनाओं का क्या? वे वही हैं, जो तब उसको बताई गई थी और ज्यादातर किस्से पृथ्वीराज रासो के अनुवाद के हैं। रासो का यह पाठ कोटा के महाराव ने उसको उपलब्ध करवाया था और जिसके 30 हजार छंदों का अनुवाद टॉड ने कर लिया था। यदि टॉड की सूचनाओं को ध्यान से पढ़ा जाए तो उसकी अनेक मान्यताओं की आलोचना केवल इस आधार पर थम सकती है कि उस लेखन में उसका था क्या? हां, तुलना की प्रवृति उसकी अपनी है और वह स्वाभाविक है।
इस ग्रंथ में टॉड की मेवाड़, मारवाड़, मालवा, हाड़ौती की यात्राओं के विवरण भी शामिल हैं। किसने पढ़ा? मैंने मेवाड़ के उन सभी गांवों को देखा तो ताज्जुब करता रहा हूं कि कितनी कठिनाइयां उठाकर वह वहां पहुंचा था। यदि वह बंबावदा नहीं जाता तो हाड़ा उत्पति स्थल और उनके शिलालेख का कैसे पता चलता। पालोद नहीं जाता तो कुमारपाल के अभिलेख का कैसे मालूम होता। आहाड में नहीं रुकता तो एक सभ्यता और संस्कृति की कैसे खोज होती! कई ऐसे मूल दस्तावेज़ उसके परिशिष्टों में है जो अब नष्ट हो चुके हैं।
हालांकि पाठ वही है, धारणा भी वही है। लेकिन सम्पादक ने अपने स्तर पर नवीन शोधों को संशोधन या टिप्पणियों के रूप में देने का प्रयास किया है। हां, मेवाड़ आदि इलाकों के नामों में जो त्रुटियां अनुवादकों ने की, वे भी यथावत है। इसीलिए मैं कई बार कहता रहा हूं कि इसका अनुवाद कोई मेवाड़ वाला ही करे तो नाहर मगरा को कभी व्याघ्र शिखर नहीं लिखे।
टॉड ने जो अभिलेख खोजे और बताये, उनमें से अधिकतर छप चुके हैं, उनको जोड़ा जा सकता था। बहुत काम है जो हो सकते हैं लेकिन फिर इसका मूल रूप ही बदल जाता! हाँ, यथारूप पढ़ने वालों के लिये सुंदर और अच्छा पाठ है। इसके पारायण के साथ ही उसकी पाद टिप्पणियां भी देखी जानी चाहिए…।
💐टॉड रो कवित्त 🙂
भट ग्रंथ सौधि सौधि, चारन की नौंध लेय,
गांव गांव जाय कौन विरासत बचावतो.
लेख अभिलेख पोथी नाना भाषा बांच बांच,
कौन तुलना अतुल करन सिखावतो.
भूमि के पियारे वीर वधुओं की कथा कथ,
कौन रजथांन नाम ख्याति महं लावतो.
जगती पे हिंद की पिटावतो मुनादी कौन,
जो पै इतिहास जेम्स टॉड ना रचावतो….l
श्रीकृष्ण ‘जुगनू’