18वीं शताब्दी की अर्थव्यवस्था, भारतीय आर्थिक इतिहास में एक महत्त्वपूर्ण पड़ाव को इंगित करता है। मनसब राज्यों की केन्द्र पर आर्थिक निर्भरता मुगल साम्राज्य से विघटन के साथ ही समाप्त हो गई। परिणामतः क्षेत्रीय राज्यों को स्वयं की सुरक्षा एवं विकास हेतु अपने क्षेत्र के आर्थिक संसाधनों को टटोलने हेतु बाध्य किया।
मारवाड़ के शुष्क क्षेत्र में सिंचित कृषि तथा आन्तरिक एवं बाह्य व्यापार को प्रोत्साहित करने की नीति स्थापना अनिवार्य थी क्योंकि इनका विकास करने में वृद्धि में सहायक सिद्ध हो सकता था। नवीन व्यापारिक मार्गों की स्थापना, शासकों द्वारा व्यापारिक संरक्षण की नीति ने एक सुव्यवस्थित आर्थिक ढाँचे को जन्म दिया। शाह, साहूकार, सेठ, महाजन, बिचैलिये, बंजारे, चटवाल आदि व्यापारिक वर्गों के उदय ने आर्थिक संरचना में परिवर्तन स्थापित किया।
प्रस्तुत पुस्तक में 18वीं शताब्दी के मारवाड़ में व्यापार एवं वाणिज्य के विकास संगठन और स्वरूप को प्रस्तुत करने का पूर्ण प्रयास किया गया। साथ ही मारवाड़ के व्यापार और वाणिज्य में परिवर्तन की पृष्ठ भूमि में आर्थिक-सामाजिक संगठनात्मक-समस्याओं और उनसे उत्पन्न विचारणीय विषय को विवेचनात्मक ढंग से प्रस्तुत करने का प्रयास किया हैं।
राजस्थान में व्यापार और वाणिज्य | Rajasthan mein Vyapar aur Vanijya
Author: Anil Purohit
Language: Hindi
Edition: 2019
ISBN: 9788186103068
Publisher: RG GROUP
₹400.00
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