महाराजा मानसिंह की भारतीय संगीत को देन : जोधपुर की शासन-परम्परा में महाराजा मानसिंह का व्यक्तित्व अद्भुत और अनुपम है। उनकी बहुमुखी प्रतिभा ने तत्कालीन राजनीति,काव्य साहित्य और संगीत कला के क्षेत्र में जो योगदान दिया था, वह आज भी अनेक दृष्टियों से अत्यन्त महत्त्वपूर्ण तथा अनुकरणीय माना जाता है। भक्तिकाव्य और संगीत के प्रति उनकी स्वाभाविक अभिरुचि थी जिसका परिज्ञान उनकी तविषयक उपलब्धियों के अध्ययन और आकलन द्वारा किया जा सकता है। प्रस्तुत कृति में उनकी भारतीय संगीत को देन’ विषयक चर्चा तथा विवेचना की गई है जिसके अनेक बिन्दु अनेक दृष्टियों से मौलिक एवं विचारणीय हैं।
पुस्तक के प्रारम्भ में लेखिका ने जोधपुर की शासन-परम्परा का सामान्य दिग्दर्शन करने के पश्चात् महाराजा मानसिंह द्वारा विरचित साहित्य का सारगर्भित निरूपण किया है जो उनके कृतित्व का एक महत्त्वपूर्ण अंग है। तदुपरांत उनके द्वारा रचित गेय पदों के राग एवं ताल का संगीतशास्त्र की भूमिका में सोदाहरण विश्लेषण किया गया है जो इस ग्रंथ का मुख्य प्रतिपाद्य विषय है । उनके सांगीतिक पद जिस दार्शनिकता से ओतप्रोत हैं,वह निश्चय ही उनके व्यक्तित्व का एक विशिष्ट अंग है जिस पर भी लेखिया की अंतर्दृष्टि उन्मुख हुई है। महाराजा का ‘गुणीजनखाना’ तथा मेहरानगढ़ पर प्रदर्शित एवं संरक्षित वाद्ययंत्र’ उनकी मानसिकता के प्रत्यक्ष प्रमाण हैं जिनसे उनके संगीत प्रेम का अनुमान लगाया जा सकता है।
कुल मिला कर यह पुस्तक संगीतशास्त्र के विविध आयामो की बारीकियों का उद्घाटन करने के साथ-साथ महाराजा की भारतीय संगीतविषयक देन का एक ऐसा खुला दस्तावेज़ है जिसके अध्ययन और अनुशीलन द्वारा उनके व्यक्तित्व और कृतित्व के विवेच्य विषय की अभीष्ट जानकारी की जा सकती है।
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