भारतीय संगीत को प. विष्णु नारायण भातखण्डे का योगदान : पं. विष्णु नारायण भातखण्डेजी के निकटतम शिष्य पद्मभूषण डॉ. श्रीकृष्ण नारायण रातंजनकर ने मुम्बई के प्रसिद्ध संगीत-समीक्षक पं. वामनराव देशपाण्डे के अनुरोध पर अपने गरुवर्य के जीवन और संगीत-क्षेत्र को उनके द्वारा दिये गये अमूत्य योगदान की कथा को मराठी में लेखबद्ध किया जिसे महाराष्ट्र राज्य साहित्य व सांस्कृतिक मण्डल ने 1956 में प्रकाशित किया। परन्तु मराठी में होने से उत्तर भारत के हिन्दी-भाषी संगीतज्ञों, रसिकों व जिज्ञासुओं के लिये उसकी उपादेयता नहीं थी। पं. भातखण्डे द्वारा संगीत संबंधी किये गये शोध, पारम्परिक बंदिशों के लिये उनके द्वारा किये गये भगीरथ प्रयत्न, प्रतिकूल परिस्थिति में संगीत की सेवा में स्वयं को झोंक देने की उनकी निष्ठा और समर्पण, संगीत के प्रयोगानुसार शास्त्र लिखने/चर्चा के लिये उनके द्वारा किये गये पाँच अखिल भारतीय संगीत परिषदों के आयोजन और बड़ौदा, ग्वालियर तथा लखनऊ में संगीत महाविद्यालयों की स्थापना के लिये किये गये उनके संघर्ष की गाथा को समझने के लिये इस पुस्तक का हिन्दी अनुवाद किये जाने की नितान्त आवश्यकता महसूस की जा रही थी।
ग्वालियर घराने में उस्ताद निसार हुसैन खाँ साहब की परम्परा के पाँचवे प्रतिनिधि गायक श्री दीपक क्षीरसागर ने उक्त पुस्तक हिन्दी में अनूदित कर प्रशंसनीय कार्य किया है । समाज में हेय समझे जाने वाले संगीत को पं. भातखण्डेजी ने कैसे प्रेय बनाया और संगीत का कैसे उद्धार हुआ यह जानने के लिये प्रस्तुत प्रयास अत्यन्त उपयोगी सिद्ध होगा।
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