कवि गंग रचनावली : भक्ति कालीन हिंदी कवियों में कवि गंग का स्थान अत्यन्त ही महत्त्वपूर्ण है। उनके कवित्तर शताब्दियों पश्चात् आज भी जन-कंठों में स्थायी आसन जमाये हुए हैं। यह प्रसिद्ध है कि अकबर कालीन इस कवि के एक कवित्त से प्रभावित होकर रहीम खानखाना ने उस काल में कवि को 36 लाख रुपये प्रदान किए थे। अकबर के दरबार में जिस प्रकार राजा बीरबल हास्य विनोद के प्रतीक माने जाते हैं, उसी प्रकार शृंगार के क्षेत्र में कोई अनोखी सूझ व्यक्त करनी हो, तो कवि गंग का आश्रय ले लिया जाता है। जैसे नीति के दोहों के बीच ‘कहे कबीर सुनो भई साधो’ का प्रचलन है, वैसे ही कवित्त और सवैयों के बीच ‘कहे कवि गंग’ अथवा ‘गंग कहै सुन शाह अकबर’ की प्रसिद्धि है। निर्भिक उक्तियों के लिए कवि गंग अद्वितीय माने जाते हैं।
प्रारंभ में कवि गंग के कवित्त लोगों में प्रचलित थे कि यदि उन्हें जनकवि कहा जाए तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी। ‘कवि गंग रचनावली’ इस प्रसिद्ध कवि की समस्त ज्ञात रचनाओं को अपने कलेवर में संजोये हुए हैं। संपादक बटे कृष्ण ने यत्नपूर्वक प्रामाणिक गंग-रचनाओं को एकत्र कर सराहनीय कार्य किया है। इसलिए हिंदी साहित्य के गंभीर अध्येताओं के साथ ही यह ग्रन्थ सामान्य कवि रसिकों के लिए भी रुचिकर तथा सहेज कर रखने योग्य सिद्ध होगा।
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