श्री आवड़ चरित्र : राजपूत युग के प्रारम्भ के साथ ही वि स 808 चैत्र सुदी नवमी मंगलवार के दिन मामडिया जी चारण के घर भगवती श्री आवड़ माता का जन्म हुआ जो इतिहास में बावन नामों से प्रसिद्ध हुई। उन्होंने जन्म से लेकर ज्योतिर्लीन होने तक अनेक परचे दिये, जिसके कारण उनकी प्रसिद्ध सम्पूर्ण भारत वर्ष में हुई। उनके परचों व परवाडों पर ठा. मूलसिंह जी भाटी ने भगवती श्री आवड़ जी महाराज में बडे ही सुन्दर ढंग से प्रकाश डाला है, जिसका मैं श्री आवड़ चरित्र के नाम से सम्पादन कर रहा हूं। भगवती श्री आवड़ माता का विराट व्यक्तिव था, जिसके कारण वे राजपूतों के सभी वंशों की कुल देवी या आराध्य देवी के रूप में प्रतिष्ठित हुई। उनके द्वारा हाकरा दरियाव का शोषण करना, सूरज को अपनी लोवड़ी की ओट में सोलह प्रहर तक रोकना, बावन देत्यों (हूणों) का संहार करना,भाटियों के राज्य को स्थायित्व देने में मदद करना आदि उनके प्रमुख परचे है।
आवड़ माता द्वारा सिन्ध के सूमराओं के राज्य का नाश करके सम्माओं को वहाँ का शासक बनवाया और उनकी आशा पुरी की। इसलिए उस समय से सम्माओं ने व उनके वंशज जाडेचा ने आवड़ माता को अपनी कुलदेवी माना तथा सिन्ध विजय की उनकी आशा पुरी करने के कारण उन्हें आशापुरा कहा गया। सूमराओं के पतन के सम्बन्ध में एक सिन्ध भाषा का पुराना दोहा मिलता है जो निम्नानुसार है :-
राज न किन्ना सूमराओं, तिन्ना दे परवार।।
अर्थात् जिसने धरने पर बैठे हुए चारणों पर अत्याचार किया उनके जौहर, झंवर जलाया एवम् चारणों के नेसडों को कुचल करके लूटा, वे सूमरा राज्य का भोग नहीं कर सके, उनका राज्य न रहा। सिन्ध की धरती ने एवम् देवी आवड़ माता ने उनकों अस्वीकार करते हुए उनका नाश कर दिया।
आवड़ माता ने सूरज को सोलह प्रहर तक रोक दिया था, जिसके सम्बध में एक दोहा इस प्रकार मिलता है :-
सूरज किणी न ढापियो, हेकण आवड़ टाळ।।
इस प्रकार उन्होंने 191 वर्ष तक अपने भौतिक शरीर को धारण किया तत्पश्चात् आवड़ माता वि.स. 999 की माह सुद को तेमडाराय पर्वत पर से सातों देवियों तांरग शिला पर बैठे कर आलोप हो गई।
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