हरिरस (ईसरदास प्रणीत) : सन्त शिरोमणि भक्त प्रवर महाकवि ईसरदास जी बारहठ रचित काव्य ग्रन्थ ‘हरि-रस’ निसन्देह डिंगल का सर्वश्रेष्ठ लोकप्रिय काव्य ग्रन्थ होने के साथ-साथ धार्मिक दृष्टि से भी गीता से कम नहीं हैं। तभी तो उत्तरी भारत में धार्मिक आयोजनों में इसका पठन पाठन करने के अतिरिक्त मरणासन्न व्यक्ति को ‘हरि-रस’ का पाठ सुनाने से उसको मोक्ष प्राप्त होता है, ऐसी मान्यता है।
ऐसे पवित्र ग्रन्थ का सैकड़ों वर्ष पहले सिन्ध प्रान्त के मिठी चेलार में सिन्धी भाषा में सर्व प्रथम प्रकाशन हुआ और उसके पश्चात् गुजरात के लींबड़ी के राजकवि श्री शंकर दान जेठीभाई देथा के द्वारा शुद्ध काव्य पाठ के साथ सम्पादन कर प्रकाशन करवाया गया, जिनके लिए वे पाठकों की श्रद्धा के पात्र हैं। इसके पश्चात भी कई विद्वानों ने ‘हरि-रस’ का सम्पादन हिन्दी व गुजराती भाषा में किया जिसके लिए वे सभी महानुभाव बधाई के पात्र हैं, परन्तु पिछले कुछ वर्षो से आधिकारिक रूप से शुद्ध छन्द – पाठ के साथ अनुवादित व सम्पादित ‘हरि-रस’ की सर्व सुलभता में न्यूनता का आभास पाठकों को होने लगा था। तभी तो (मेरी काव्य व गद्य रचनाओं 1. मरुधर महिमा 2. आईदास मा सुजस बावजी, 3. महाकवि ईसरदास जी बारहठ की प्रामाणिक जीवनी के प्रकाशन व देवियांण’ के सम्पादन के पश्चात्) मेरे पास अनेक ‘हरि-रस’ प्रेमी पाठकों के पत्र व फोन आए कि “आप ‘हरि-रस’ का शुद्ध छन्द पाठ के साथ अनुवाद कर सम्पादन करें, तो यह समाज व साहित्य दोनों का सेवा कार्य होगा, क्योंकि वर्तमान में इसकी अत्यधिक आवशकता है।”
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