सम्पूर्ण विदुर निति : परम् कृष्णभक्त, अपरिग्रही, शास्त्रकुशल और नीतिविद् के रूप में विदुर महाभारत के एक ऐसे पात्र हैं, जो कथा को प्रवाह न देकर भी इस इतिहास ग्रन्थ के लिए अपरिहार्य हैं। पूरी महाभारत में विदुर नितान्त निष्पक्ष रूप में धृतराष्ट्र को पुत्रमोह त्याग कर, नीति पथ पर चलकर, पाण्डवों को राजपद देने के लिए प्रेरित करते रहे है। महाभारत में स्थल-स्थल पर विदुर ने नीति कथन किया है। किन्तु उद्योग पर्व के आठ अध्यायों (33 से 40 तक) में विदुर ने उद्विग्न तथा सन्तप्त धृतराष्ट्र को जो उपदेश दिया है – वही विदुरनीति नाम से प्रख्यात हुआ और नीतिग्रन्थों की परम्परा में बहुमूल्य रत्न सदृश प्रकाशित है। जीवन में बाल्यावस्था से वृद्धावस्था तक अनेक कठिन-समस्यापूर्ण अवसरों पर अपने सरल और अनुकरण योग्य कथनों से राह सुझाती यह विदुरनीति सभी के लिए पठनीय है।
न संरोहति वाक्क्षतम्…
मायाचारो मायया वर्तितव्य:…
सहायसाध्यानि हि दुष्कराणि…
निरर्थं कलहं प्राज्ञो वर्जयेत्…
तोषपरो हि लाभ:…
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