राजस्थान की प्रेम कथाएँ
accordingly प्रस्तुत पुस्तक में मूमल, भारमली, जलाल बूबना, सोरठा, आसा, केहर, सैंणी, जेठवा उजली, झीमां चारणी, जसमा ओडण, भूमि परक्खो, आभलदे, ढोला मारू, नागजी जैसी लोक कथाओं का वर्णन तथा अनुवाद किया गया है। Rajasthan Ki Prem Kathayen (Love Stories of Rajasthan)
specifically राजस्थान में ‘बात’ (कहानी) कहने की अपनी शैली है। वह शैली अनूठी है और परम्पराओं से परिपूर्ण है। ‘बात’ कहने वाले बात कलाकार होते हैं। इन्हें बातपोश भी कहा जाता है। कई घराने ऐसे हैं जो पीढ़ी-दर-पीढ़ी बात कहते आये हैं। बात कहने के मुहावरे, तर्ज, तरीका, विषय, वर्णन और लहजा सैकड़ों कलाकार गढ़ते आये, परिमार्जन करते आये, आवश्यकतानुसार परिवर्द्धन और परिवर्तन होते रहे। इसीलिये राजस्थान की बातों का प्रस्तुतिकरण नितान्त अनूठा, अभिनयपूर्ण और बड़ा प्रभावी है।
बात पोशों को पुरस्कार मिलते, सम्मान मिलता और आजीविका के लिये जमीनें प्रदान की जाती रहीं। एक-एक बात के पीछे परम्परा और संस्कृति की गंगा-यमुना के बहने का कलकल शब्द सुनाई देता है। बात के पीछे रणक्षेत्र झाँकते दिखाई देते हैं। इनमें बातों के गवाक्ष से इतिहास झाँकता है। ये सरसता, मधुरता, वीरता, बलिदान और प्रेमरस से ओत-प्रोत हैं। वीररस और श्रृंगार रस का तो इनमें भंडार भरा पड़ा है। प्रेमी और प्रेमिकाओं के सच्चे प्रेम को राजस्थान के बातपोशों ने अमर कर दिया है।
Rajasthan Ki Prem Kathayen (Love Stories of Rajasthan)
afterward ध्यान देने योग्य बात यह है कि इन मनमोहक गाथाओं में किसी व्यक्ति विशेष की प्रमुखता और चापलूसी की भावना नहीं रही है। न इसमें किसी संप्रदाय और जाति का भेदभाव बरता है। न इनमें गरीब और अमीर का श्रेणी भेद रखा है। व्यक्ति के चरित्र और कृत्य को ही प्रमुखता दी गई है। इसमें आवाज है जन मानस की। लोक भावना बोलती है। उस युग की सच्चाई, कमजोरी, रीति-रिवाज, तथ्य और परंपरा का वास्तविक रूप इन कहानियों में झलकता है। यह राजस्थान की आत्मा है। उन्हीं लोक प्रचलित बातों को मैंने अपनी भाषा में अपने ढंग से प्रस्तुत करने का प्रयास किया है। भाव-विभूति, अलंकरण और भाषा तो मातृभाषा राजस्थानी की संपदा है। मेरी लेखनी और मैं निमित्त मात्र हैं। (Love Stories of Rajasthan)
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