Viramdev Sonigara ri Vaat

वीरमदेव सोनीगरा री वात
Author : Manohar Singh Gehlot, Purushotamlal Menariya
Language : Hindi
ISBN : 9789385593871
Edition : 2018
Publisher : RG GROUP

300.00

वीरमदेव सोनीगरा री वात :
A Muslim Princess becomes Sati (A Historical Romance of Hindu-Muslim Unity)

‘वीरमदेव सोनगरा री वात’ वीरभाव प्रधान और ऐतिहासिक कथा है। राजस्थानी लोक साहित्य की इस प्रसिद्ध कथा में वीरमदेव का जीवन चरित वर्णित है। जालौर अधिपति सोनगरा चैहान कान्हड़ देव था और उसका पाटवी राजकुमार वीरमदेव था।
पंजू पायक से वीरमदेव ने विभिन्न दावपेंच सीखें । कालान्तर में पंजू पायक जालोर से भागकर बादशाह अलाउद्दीन के पास दिल्ली पहुंचा और वहां परवाना भेजकर वीरम को दिल्ली बुलाया। पंजू और वीरम अखाड़े में उतरे इस मुकाबले में वीरम के हाथ से पंजू मारा गया। वीरमदेव की वीरता पर अलाउद्दीन की पुत्री ‘शाह बेगम’ (पीरोजा) वीरम पर मुग्ध हो गई और उससे विवाह करने की ठान ली।
वीरमदेव ने स्पष्ट मना तो नहीं किया परन्तु बहाना बनाकर वहां से जालौर जाकर बारात सजधज कर लाने का आश्वासन दिया। जालौर आकर वीरमदेव ने युद्ध की तैयारी की। वादे के मुताबिक वीरमदेव के नहीं आने पर अलाउद्दीन ने जालौर दुर्ग को घेर लिया। बारह वर्ष बीत गये पर दुर्ग पर विजय प्राप्त नहीं हुई। हताश होकर अलाउद्दीन लौट गया पर एक देश द्रोही भेदिया वापस उसको लौटा लाया। अलाउद्दीन ने बारूद से किले की प्राचीर को उड़ा दिया। दुर्ग स्थित सभी स्त्रियों का वध कर दिया। वीरमदेव युद्ध करते हुए वीरगति को प्राप्त हुआ।
वीरमदेव के कटे सिर को थाल में रखकर शाह बेगम के सामने लाया गया पर कहते हैं कि शाहजादी को देखकर वीरमदेव के कटे सिर ने अपना मुंह फेर लिया तब शाहजादी ने कहा सो नगरे सरदार तू अपना सिर मत घुमा। तू मेरे जन्म जन्मांतर का भरतार है। अब अपना मिलन अग्नि की ज्वाला में होगा। अन्त में वीरमदेव का सिर अपनी गोद में लेकर शहजादी सती हुई।

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