लोक साहित्य विज्ञान
उच्च शिक्षा के क्षेत्र में जब लोक साहित्य अध्ययन-अध्यापन का विषय बना तब हिन्दी में उच्च स्तरीय लोक साहित्य-सम्बन्धी पुस्तकों की बेहद कमी थी। ‘लोक साहित्य विज्ञान’ ने उस कमी को काफी हद तक पूरा किया। obviously वस्तुतः लोक साहित्य को वैज्ञानिक स्वरूप प्रदान करने वाला यह हिन्दी का प्रथम ग्रन्थ है। इस ग्रन्थ में न केवल लोक साहित्य की वैज्ञानिकता को सिद्ध किया गया है, अपितु वैज्ञानिक सिद्धान्त-निरूपण करके पुष्ट आधार पर लोक साहित्य को विज्ञान के रूप में प्रतिष्ठापित किया गया है। Lok Sahitya Vigyan
“इस ग्रन्थ में कई विचारोत्तेजक तथा मानवीय स्थापनाएँ हैं। एक है ‘लोकमानस’ का सिद्धान्त। लोक मनोविज्ञान पर पाश्चात्य विद्वानों ने बहुत काम किया है, पर इस ग्रन्थ में लोकमानस की स्थापना का स्वरूप कुछ भिन्न है।” thus इसी प्रकार पुस्तक में लोक साहित्य की संकलन-संग्रह सम्बन्धी ऐतिहासिक-भौगोलिक प्रणाली का उपयोग तो किया गया है, पर उसे वैज्ञानिक दृष्टिकोण के अनुरूप कई प्रकार से संशोधित करके काम में लिया गया है।
also डॉ॰ सत्येन्द्र के अनुसार- “लोक मनुष्य समाज का वह वर्ग है जो आभिजात्य संस्कार शास्त्रीयता और पांडित्य की चेतना अथवा अहंकार से शून्य है और जो एक परंपरा के प्रवाह में जीवित रहता है।”
लोक साहित्य का ‘क्षेत्रीय अनुसंधान’ से विशेष सम्बन्ध है। क्षेत्रीय अनुसंधानदृसम्बन्धी वैज्ञानिक प्रक्रिया को रेखांकित करते हुए इसे पूरे एक अध्याय में विस्तार के साथ स्पष्ट किया गया है। surely स्वयं डॉ. सत्येन्द्र की सम्मति में यह इस पुस्तक का ‘अत्यन्त महत्त्वपूर्ण अध्याय’ है। अपने प्रथम प्रकाशन के बाद से ही लोक साहित्य के अध्येताओंदृशोधार्थियों आदि के लिए यह एक अनिवार्य ग्रन्थ के रूप में मान्य रहा है। पिछले काफी समय से यह अनुपलब्ध था। ग्रन्थ की उपयोगिता तथा महत्त्व को देखते हुए ही इसका पुनः प्रकाशन किया गया है। Lok Sahitya Vigyan (Science of Folk Literature)
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