राजस्थान के राजवंशों का इतिहास
राजस्थान के विभिन्न राजवंशों के इतिहास के विषय में काफी अटकलें लगाई जाती रही है। विभिन्न राजवंशों का क्या व कैसा शासन रहा यह जानकारी देने के अलावा राजस्थान के इतिहास सम्बन्धी राजनैतिक, सामाजिक व आर्थिक विषयों पर राजस्थान के सुप्रसिद्ध इतिहासज्ञ स्व. जगदीश सिंह गहलोत के विद्धतापूर्ण लेखों का यह अद्धितीय संकलन है। विभिन्न शासकों का विविधकम भी इसमें समाविष्ठ है। surely राजस्थान के इतिहास के शोधकर्मियों के लिए एक अत्यन्त उपयोगी पुस्तक है। Rajasthan Rajvanshon ka Itihas
(History of Dynasties of Rajasthan)
specifically भारतीय इतिहास में उस भूभाग का महत्वपूर्ण स्थान रहा है जो इस समय तीन प्रदेशों-गुजरात, राजस्थान तथा हरियाणा में विभक्त हैं। पिछले बीस वर्षों में इस क्षेत्र में किए गए पुरातत्वीय सर्वेक्षणों तथा उत्खननों में प्रागैतिहासिक काल से लेकर ईसवी बारहवीं शती तक के दीर्घकालीन इतिहास पर प्रभूत प्रकाश पड़ा है। बीकानेर क्षेत्र के काली बंगन नामक स्थान में की गई खुदाई से जिन संस्कृतियों का उद्घाटन हुआ है उनमें से एक हड़प्पा-संस्कृति से पहले की सिद्ध हुई है।
also सरस्वती तथा दुषद्वती नदियों के काँठों में की गई खोजों से वैदिक एवं प्राग्वेदिक सभ्यताओं के अनेक स्थलों कापता चला है। अहाड़, रूपड़, अगरोहा, बैराट, मध्यमिका, सुध, देवनीमोरी आदि स्थानों में किए गए उत्खननों से जिस काल की सभ्यता का व्यापक ज्ञान हुआ है उसका समय ईसवी पूर्व द्वितीय सहस्राब्दी से लेकर गुप्त काल के अन्त तक है। इन उत्खननों से उपर्युक्त विस्तृत क्षेत्र की प्राचीन नगर निर्माणयोजना, आर्थिक एवं सामाजिक व्यवस्था, राजनीतिक स्थिति तथा ललित कलाओं के बारे में जानकारी मिली है, जो पहले अज्ञात थी।
इस क्षेत्र में राजपूत शासकों के अभ्युदय के पर्व विविध रूपों में नपतंत्र एवं गणतंत्र के अस्तित्व का पता चला है। मौर्य साम्राज्य के विशृंखलन के पश्चात् यह भूभाग अनेक स्वतन्त्र राज्यों में विभक्त हो गया। चौहान वंश, यादव वंश, कछवाहा वंश, परमार वंश, राठौर वंश, भाटी वंश, गहलोत वंश, झाला वंश आदि राजस्थान के प्रमुख राजवंश कहे जाते है।
Rajasthan Rajvanshon ka Itihas
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