भारत के व्रत एवं त्योहार
भारत को बहुआयामी तथा बहुरंगी संस्कृति में जितना महत्त्व अध्यात्म का है, उतना ही महत्त्व है व्रतों, पर्वों, त्योहारों और उनसे जुड़ी पौराणिक और लोक कथाओं का। इन्हीं पर्वों, व्रतों और कथाओं में छिपे थे, आस्था और विश्वास के बीजमन्त्र। Bharat Ke Vrat Tyohar
वर्तमान युग एक विचित्र संक्रमण का युग है। भौतिक स्पर्धा ने मानव को बुद्धि को तो धारदार किया, किन्तु उसके मन से श्रद्धा और विश्वास का वह स्वर्णिम तन्तु लगभग उखाड़ फेंका है, जो जीवन में सौरव्य के लिए बेहद जरूरी है।
भारतीय ऋषियों ने सत्य, परोपकार, क्षमा, इन्द्रिय-निग्रह, भगवद भजन-ध्यान को धर्म कहा था। बहुत सीधी-सी बात है कि मन शुद्ध है तो विचार सात्विक होगे और उनसे आचरण भी पवित्र होगा, यही धर्म पालन है। also शुद्ध मन, सात्त्विक प्रवृति और पवित्र आचरण में उल्लास और आनन्द भरने के लिए पर्व-त्योहार जुड़े और जुड़ी लोक तथा पौराणिक कथाएं।
but समय क्रम में धीरे-धीरे मन, विचार और आचरण की शुद्धता की जगह आडम्बर बढ़ता गया। मन में द्वेष, परनिन्दा भरी है और ऊपर से घण्टे बजाना या गंगास्नान करना ही धार्मिक होने को गारण्टी बन गया। व्रत तो किया, पर सारा दिन फल-दूध-आलू खाते रहे; खुद ताश खेलते रहे और कथा का कैसेट बजाकर पूजा पूरी हो गई।
accordingly इस पुस्तक में भारत में प्रचलित पर्वों, व्रतों और कथाओं को एक नवीन रूप में प्रस्तुत करने का प्रयास किया गया है। त्योहारों के विषय में लोक प्रचलित विश्वासों के साथ उनकी वैज्ञानिक व्याख्या भी की गई है। आडम्बर को त्याग कर पर्वों के शुद्ध स्वरूप के पालन पर बल है और पूजा-उपासना से चुने अन्य सभी अनावश्यक त्तत्त्व है।
surely हिन्दू संस्कृति में हर एक दिन की अपनी एक विशेषता होती हैं तथा भारत में कई संस्कृतियों का समावेश हैं, जिससे जुड़ी विचारधाराओं एवं मान्यताओं के आधार पर भिन्न-भिन्न त्यौहार मनाये जाते हैं।
Bharat Ke Vrat Tyohar
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