औपनिषद रहस्यम्
मानव की दो मौलिक प्रवृत्तियाँ होती हैं- १. जिजीविषा अर्थात् सन्तुलित जीवन जीने की इच्छा और २. मुमुक्षा, जिन्हें अभ्युदय तथा निःश्रेयस रूप में जाना जाता है।
इस अभ्युदय के साथ निःश्रेयस के अधिगम का एकमात्र साधन है- प्रस्थानत्रयी। प्रस्थान’ शब्द का अर्थ है- प्रतिष्ठते लक्ष्य प्राप्तुं अनेन पथा इति प्रस्थानं मार्गः। वेद के ज्ञान, उपासना एवं कर्म के अन्तर्गत कर्मकाण्ड को लेकर ब्राह्मणग्रन्थों की रचना की गई और ज्ञानकाण्ड को आधार बनाकर उपनिषदों की। वहाँ ज्ञान को व्यापक परिप्रेक्ष्य में ग्रहण किया गया है, जो नैतिकता, धार्मिकता, अन्तःकरण की निर्मलता, आहार शुद्धि, तप, ब्रह्मचर्य, श्रद्धा, योग एवं प्राणायाम आदि रूप है। इन्हीं साधनों से सम्पन्न होकर समित्पाणि मनुष्य ब्रह्मवेत्ता गुरु की शरण ग्रहण करके
माया-मोह के बन्धन से शनैः शनैः मुक्त हो जाता है।
प्रस्थानत्रयी के रूप में प्रतिष्ठाप्राप्त ग्रन्थ है- उपनिषद्, ब्रह्मसूत्र और भगवद्गीता। इनमें बेद के सारभूत तत्त्वों का प्रतिपादक होने से उपनिषदों का ही एक नाम वेदान्त है-वेदान्तो नामोपनिषत्प्रमाणम्।
उपनिषद् विद्या सार्वभौम है अर्थात् पात्र को ध्यान में रखाकर प्रत्येक देश-काल में उपदेष्टव्य है। उपनिषदों की शैली संवाद की शैली है। सभी ऋषि एक तरह से बात न करके अलग-अलग तरह से अपना विचार प्रकट करते हैं, किन्तु इस वैचारिक भिन्नता से भी संवाद ही होता है जिसमें ‘वादे-बादे जायते तत्त्वबोधः’ के अनुसार हमें एक नई दृष्टि मिलती है।
उपनिषद् साहित्य के विविध पक्षों पर इस राष्ट्रिय सङ्गोष्ठी में जो चिन्तन हुआ है उसका सङ्कलित रूप औपनिषद-रहस्यम् नामक यह ग्रन्थ विद्वज्जन का कण्ठहार बनकर विश्व शान्ति के सुदृढ़ पथ को और भी प्रशस्त करने में महत्त्वपूर्ण बनेगा।
Aupnishad Rahasyam
औपनिषद रहस्यम्
Author : Satyaprakash Dubey, Dilip Kumar Nathani
Language : Hindi
ISBN : 9788192453729
Edition : 2015
Publisher : RG GROUP
₹400.00
Reviews
There are no reviews yet.